विष्णु जी की आरती: भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम
भगवान विष्णु को 'पालनकर्ता' के रूप में पूजा जाता है, जो संसार की रक्षा और व्यवस्था बनाए रखते हैं। वे दया, करूणा और न्याय के प्रतीक हैं। उनके दस अवतार, जिन्हें 'दशावतार' कहा जाता है, संसार को अधर्म से मुक्त करने और धर्म की स्थापना के लिए जाने जाते हैं। राम और कृष्ण उनके सबसे प्रमुख अवतारों में से हैं। विष्णु जी की पूजा करने से जीवन में संतुलन, सदाचार और सुकून की अनुभूति होती है।
विष्णु जी की आरती का महत्त्व
आरती हिंदू पूजा पद्धति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देवता के प्रति भक्त की प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति है। विष्णु जी की आरती, विशेष रूप से, उनके दिव्य गुणों का स्मरण कराती है और हमें उनके संरक्षण में विश्वास दिलाती है। जब आरती की थाल जलते दीपों के साथ घुमाई जाती है, तो यह प्रतीक है कि हम अपने जीवन के अंधकार को दूर कर विष्णु जी की कृपा से प्रकाशित होना चाहते हैं।
विष्णु जी की आरती का पाठ सरल और मधुर है, लेकिन इसका प्रभाव असीमित है। इसका गायन करते समय भक्त विष्णु जी के सभी रूपों की महिमा का गान करते हैं। यहाँ विष्णु जी की लोकप्रिय आरती "ॐ जय जगदीश हरे" का पूरा पाठ दिया जा रहा है:
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
इस आरती के बोलों में भक्त विष्णु जी से संसार के सभी कष्टों को दूर करने और सुख-शांति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।
विष्णु जी की आरती गाकर हम उनके दिव्य स्वरूप का अनुभव कर सकते हैं और उनकी कृपा से अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
ॐ जय जगदीश हरे!