द्वारका का रहस्य: कब, क्यों और कैसे डूबी भगवान कृष्ण की पौराणिक नगरी द्वारका?
द्वारका, भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय नगरी, भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह वही नगरी है जिसे श्रीकृष्ण ने मथुरा छोड़ने के बाद समुद्र किनारे स्थापित किया था। द्वारका का डूबना केवल धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि आधुनिक पुरातात्विक खोजों ने भी इसके अस्तित्व को साबित किया है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि द्वारका कैसे, क्यों और कब डूबी, और इसके पीछे के धार्मिक, ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं।
द्वारका: पौराणिक इतिहास और धार्मिक मान्यता
द्वारका का सबसे पहले उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। महाभारत के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर मथुरा में शांति स्थापित की, तो बाद में कौरवों के साथ संघर्ष से बचने के लिए उन्होंने मथुरा से द्वारका की स्थापना की। यह नगर समुद्र के किनारे बसाया गया और अद्भुत वास्तुकला और सुरक्षा का एक नमूना था।
भगवान कृष्ण के जीवनकाल में द्वारका एक समृद्ध नगरी के रूप में जानी जाती थी। इसे "द्वारों का नगर" कहा जाता था, जो अपने व्यापारिक और सैन्य महत्व के लिए प्रसिद्ध था।
द्वारका का डूबना: पौराणिक दृष्टिकोण
गांधारी का श्राप
महाभारत युद्ध के बाद, जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था, तो कौरवों की माता गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध और अपने पुत्रों की मृत्यु के लिए दोषी ठहराया। अपने शोक में, गांधारी ने श्राप दिया कि जैसे कौरवों का वंश नष्ट हुआ, वैसे ही यदुवंश भी नष्ट हो जाएगा। गांधारी का यह श्राप सत्य हुआ और यदुवंश आपसी कलह और संघर्ष के कारण नष्ट हो गया। अंत में, द्वारका भी समुद्र में समा गई।
ऋषियों का श्राप
महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह-तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां यादव कुल के कुछ नवयुवकों ने उनके साथ परिहास (मजाक) करने का सोचा। वे श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेष में ऋषियों के पास ले गए और कहा कि ये स्त्री गर्भवती है। इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा?
ऋषियों ने जब देखा कि ये युवक हमारा अपमान कर रहे हैं तो क्रोधित होकर उन्होंने श्राप दिया कि- श्रीकृष्ण का यह पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए एक लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा तुम जैसे क्रूर और क्रोधी लोग अपने समस्त कुल का संहार करोगे। उस मूसल के प्रभाव से केवल श्रीकृष्ण व बलराम ही बच पाएंगे। श्रीकृष्ण को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि ये बात अवश्य सत्य होगी।
द्वारका में हुए अपशकुन
द्वारका में कई भयानक अपशकुन होने लगे, जैसे चूहे लोगों के नाखून और बाल कुतरने लगे, पक्षियों की आवाज़ें बदल गईं, और जानवर अजीब व्यवहार करने लगे। ये घटनाएँ संकेत थीं कि यदुवंश का अंत नजदीक था।
अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे प्रद्युम्न -
जब श्रीकृष्ण ने नगर में होते इन अपशकुनों को देखा तो उन्होंने सोचा कि कौरवों की माता गांधारी का श्राप सत्य होने का समय आ गया है। इन अपशकुनों को देखकर तथा पक्ष के तेरहवें दिन अमावस्या का संयोग जानकर श्रीकृष्ण काल की अवस्था पर विचार करने लगे। उन्होंने देखा कि इस समय वैसा ही योग बन रहा है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। गांधारी के श्राप को सत्य करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थयात्रा करने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण की आज्ञा से सभी राजवंशी समुद्र के तट पर प्रभास तीर्थ आकर निवास करने लगे।
प्रभास तीर्थ में रहते हुए एक दिन जब अंधक व वृष्णि वंशी आपस में बात कर रहे थे। तभी सात्यकि ने आवेश में आकर कृतवर्मा का उपहास और अनादर कर दिया। कृतवर्मा ने भी कुछ ऐसे शब्द कहे कि सात्यकि को क्रोध आ गया और उसने कृतवर्मा का वध कर दिया। यह देख अंधकवंशियों ने सात्यकि को घेर लिया और हमला कर दिया। सात्यकि को अकेला देख श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न उसे बचाने दौड़े। सात्यकि और प्रद्युम्न अकेले ही अंधकवंशियों से भिड़ गए। परंतु संख्या में अधिक होने के कारण वे अंधकवंशियों को पराजित नहीं कर पाए और अंत में उनके हाथों मारे गए।
द्वारका का डूबना
यदुवंश के नाश के बाद, श्रीकृष्ण ने अपने सारथी दारुक को अर्जुन को बुलाने के लिए हस्तिनापुर भेजा। अर्जुन द्वारका पहुंचे और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिजनों को इंद्रप्रस्थ ले जाने का निर्णय किया। अर्जुन के नेतृत्व में सभी नगरवासी द्वारका छोड़कर निकल गए, और जल्द ही पूरी नगरी समुद्र में डूब गई।
यह घटना देखकर सभी आश्चर्यचकित रह गए। श्रीकृष्ण के स्वधाम गमन के बाद द्वारका नगरी पूरी तरह से समुद्र में विलीन हो गई, जो आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
द्वारका का डूबना न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण घटना है। यह दर्शाता है कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण की नगरी, जो कभी वैभवशाली थी, श्राप और संघर्ष के कारण समुद्र में समा गई। द्वारका का इतिहास और इसके रहस्य आज भी लोगों को मोहित करते हैं और कई वैज्ञानिक और धार्मिक शोधों का विषय बने हुए हैं।
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